बिहार में साँस लेना मुश्किल, पर क्या 15 वर्ष पुराने वाहन हटाने से हालात सुधर जायेंगे?

बिहार में साँस लेना मुश्किल, पर क्या 15 वर्ष पुराने वाहन हटाने से हालात सुधर जायेंगे?




बिहार सरकार ने आज से यानि की 7 नवम्बर से बिहार में 15 वर्ष से अधिक पुराने व्यावसाईक एवं सरकारी वाहनों के परिचालन पर रोक लगा दिया है| 7 नवम्बर से 15 वर्ष से ज्यादा पुराने वाहन बिहार में नहीं चलेंगे|

बिहार के मुख्यमंत्री माननिये नितीश कुमार ने वायु प्रदुषण के लगातार बिगड़ते स्तर को लेकर एक समिक्षताम्क बैठक बुलाई थी, इस बैठक में यह फैसला लिया गया है कि बिहार में अब 15 वर्ष से ज्यादा पुराने सरकारी व व्यवसाई वाहनों के परिचाल को बंद कर दिया जाय| साथ ही इस बैठक में यह निर्णय भी लिया गया कि वैसे किसानो को कृषि सम्बंधित सब्सिडी नहीं दिया जायगा जो खेतों में पराली जलाते हैं|

इस सम्बन्ध में बिहटा के अमहरा ग्राम से सम्बंधित किसान नेता श्री अनद कुमार कहते है कि- "पहली बात तो यह है कि सब्सिडी तो सिर्फ बड़े किसानों के लिए है आम या गरीब किसान तो सब्सिडी का स भी नहीं जानते हैं|  दूसरी अगर पराली हिन् जलाने से प्रदुषण फैलता तो भारत में प्रदुषण का सर्वाधिक असर गांवो में होता ना की शहरों में| जबकि हमारे ग्राम अम्हारा में तो प्रदुषण नहीं है, सरकार चाहे तो जाँच करवा ले| इन सबसे ऊपर सबसे अहम् प्रश्न तो यह है कि सरकार ने पराली को ठिकाने लगाने की क्या व्यवस्था की है?

बिहार के कुछ विकसित जिले पटना, मुझफ्फरपुर, गया में वायु प्रदुषण की हालत वाकई में घोर रूप से चिंताजनक है| विश्व स्वास्थ्य संगठन की वायु प्रदुषण पर वर्ष 2016 में आई एक रिपोर्ट के अनुसार पूरी दुनिया में गया 4थे, पटना पांचवें. और मुझफ्फरपुर 9वें  स्थान पर है|

बिहार प्रदुषण बोर्ड के द्वारा पटना में बढ़ते वायु प्रदुषण के कारणों पर किये गए एक सर्वेक्षण के अनुसार राजधानी पटना में प्रदुषण के लिए 32 प्रतिशत वाहन, 7 प्रतिशत ऊद्योग, 12 प्रतिशत धुल कण, 10 प्रतिशत हिटिंग, 5 प्रतिशत डी जी सेट, 4 प्रतिशत ईंट भट्ठा जिम्मेदार है|

वायु प्रदुषण को कम करने तत्काल उपायों के बारे में पूछे गए सवालो का जवाब देते हुए राज्य के मुख्य सचिव श्री दीपक कुमार बताते है- "शहर में लोग ऑटो रिक्शा, सिटी बस आदि में किरोसिन तेल डालकर चलते है, इस पर कार्रवाई की जायगी| इसके अलावा सभी विकसित शेरोन एवं उसके आस पास के ईंट भट्ठों की जाँच की जायगी, साथ ही साथ जिन स्थानों पर निर्माण कार्य चल रहा है वहाँ के लिए आवश्यक गाइड लाइन जीरी की जा चुकी है|

बिहार प्रदुषण बोर्ड के वेबसाइट पर दर्ज आंकड़ों के मुताबिक राजदानी पटना में कुल 1095 दिनों में मात्र 7 दिन ही आबोहवा स्वास्थ्य को नुक्सान पहुँचाने के लायक नहीं थी|  जबकि इन्ही 1095 दिनों में सिर्फ 361 दिन ही पटना की हवा संतोषजनक थी|

बिहार में वायु प्रदुषण पर सिद नाम की एक संस्था काम कर रही है, इसी संस्था की एक सदस्या अंकिता ज्योति बताती हैं कि-  हमारी संस्था द्वारा किये गए एक सर्वेक्षण के मुतबिक बिहार में वायु प्रदुषण का दुष्प्रभाव इतना भयंकर है कि पटना में स्थाई रूप से रहने वालों की उम्र लगभग 7.5 वर्ष कम हो गई है|

कहीं ख़ुशी कहीं गम

इसी सम्बन्ध में बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, मिति ट्रक असोसिएशन के जवाहर निराला बीबीसी से बातचीत के दौरान गाड़ियों पर पाबन्दी लगाने वाले सरकार के इस फैसले को बेरोजगारी, महंगाई और भुखमरी बढाने वाला फैसला बताते है| श्री निराला आगे बतातें है कि एक ट्रक से कम से कम 15 लोगों को रोजगार एवं आमदनी कान्य साधन मिलते है| अगर हमारी गाड़ियाँ ज्यादा प्रदुषण करती है तो हमारी गाड़ियों के इंजिन बदलवाने को बोलो, उन्हें मोडिफाई करवाओ ये क्या की पूरी की पूरी गाडी ही हटवा दो|

वहीँ ईस सन्दर्भ में 7 वर्ष के बच्चे की माँ सुस्म सिंह कहती है की पटना में सांस लेना मुश्किल होता जा रहा है, वायुप्रदुषण का कहर इतना अधिक है कि सड़क पर जाते ही आँखे लहरने लगती है| मै अपने बच्चो को घर से बहार खेलने नहीं जाने देती जिस वजह से उनका व्यवहारिक पहलु ख़राब हो रहा है| ऐसे में सरकार के इस फैसले से हवा में कुछ सुधार तो जरुर आयगा| सड़कों पर गाड़ियाँ कम चलेंगी की तो प्रदुषण भी कम होगा| मै तो सरकार के इस फैसले से खुश हूँ|

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