अयोध्या मामला: सुनवाई पूरी हो चुकी है, फैसला सर्वोच्च न्यायलय ने सुरक्षित रखा है| आइये जानते है अबतक के अदालती दांवपेंच की कहानी|

अयोध्या मामला: सुनवाई पूरी हो चुकी है, फैसला सर्वोच्च न्यायलय ने सुरक्षित रखा है| आइये जानते है अबतक के अदालती दांवपेंच की कहानी|



अयोध्या विवाद पर पिछले 40 दिनों से चल रही मैराथन कार्यवाही बुधवार को पूरी होगी और अब ऐसा कहा जा रहा है की संभवतः 15 नवम्बर तक सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुनायगी क्यूंकि सुप्रीम कोर्ट के मुख्या न्यायाधीश रंजन गोगोई 17 नवम्बर को सेवानिवृत हो रहें है|

नवम्बर माह में आने वाला यह फैसला कई मायनों में सम्वेदाब्शील और ऐतिहासिक होगा| राजनैतिक दृष्टिकोण से तो बेहद ही सम्वेदंशिल्फैसला होने वाला है यह| गौरतलब है कि लगभग 1 सप्ताह पूर्व से ही अयोध्या में धरा 144 लागु है| एकदिन पूर्व ही जुस्तिश गोगोई ने कहा था की बुधवार को शाम 5 बजे तक सुनवाई पूरी हो जायेगी परन्तु यह सुनवाई पूरी होने की घोषणा 1 घंटे पूर्व ही कर दी गई| इस सुनवाई के सम्बन्ध में कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर किसी पक्ष की दलीलें अभी भी बाकी रह गईं हैं तो सम्बंधित पक्ष उसे तीन दिन के अन्दर लिखित रूप से दे सकतें हैं|

विवाद की सुनवाई सर्वोच्च न्यान्यालय की एक संविधान पीठ कर रही है, इस पीठ की अध्यक्षता सर्वोच्च न्यायलय के मुख्या न्यायाधीश गोगोई ने की है| 40 दिनों तक चले इस लम्बे अदालती दांवपेंच के बाद अब सर्वोच्च न्यायलय ने फैसला सुरक्षित रख लिया है|

की गई थी सुलह की नाकाम कोशिश

अयोध्या के बहुचर्चित एवं बहुप्रतीक्षित मंदिर मस्जिद जमीन विवाद की सुनवाई करने वाली सफ्र्वोच्च न्यायलय की संविधान पीठ के अन्य चार न्यायाधीश- जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस डीवाय कान्द्रचुर, जस्टिस शरद अरविन्द बोबटे  और जस्टिस एस अब्दुल नजीर हैं| सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई 6 अगस्त से प्रतिदिन यानि की सप्ताह में 5 दिन करना शुरू किया था|

इससे पूर्व सेवानिवृत जस्टिस एमएफआई कलिफुल्लाह की अगुआई वाली तीन सदस्य वाली एक मध्यस्तथा पैनल द्वरा इस मामले को बात चित से सुलझाने की नाकाम कोशिश की गई थी| सुप्रीम कोर्ट में चलने वाली यह सुनवाई 30 सितम्बर 2010 को मामले पर आये इलाहावाद उच्च न्यायलय के फैसले के खिलाफ दायर याचिका के अनुसार थी| इस्लाहबाद सुप्रीम कोर्ट ने अब से नौ वर्ष पूर्व यह फैसला दिया था कि अयोध्या की विवादित 2.77 एकड़ भूमि को तीन बराबर हिस्सों में बाँट दिया जाय| इस्लाबाद उच्च न्यायलय ने विवादित जमीं को राम लाला, सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाडा के बीच बराबर बराबर बाँटने का फैसला दिया था|

परन्तु अयोध्या भूमि विवाद के तीनों पक्षकारों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लाला ने कोर्ट के फैसले को मानने से इनकार करते हुए भारतीय सर्वोच्च न्यायलय का दरवाजा खटखटाया था और मामले के फैसले में बदलाव करने की अपील की थी|

क्या है निर्मोही अखाड़े की दलील

निर्मोही अखाडा ने सुप्रीम कोर्ट को अपने पक्ष में दलील देते हुए बताया कि अयोध्या की विवादित भूमि पर राम मंदिर बनाने की इक्षा रखने वाले लोगों का दावा है कि बाबर का सिपहसलार मीर बंकि ने राम मंदिर के बने किले को तोड़ कर 1528 में मस्जिद बनवाई थी| निर्मोही अखाड़े के वकील भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए या दावा करते हैं कि विवादित भूमि के ऊपर खड़े ढांचे के निचे मंदिर था|

अखाड़े के तरफ से बहस करने वाले सीनीयर वकील सुशिल कुमार जैन ने जिरह करते हुए सर्वोच्च न्यायलय से से उच्च अदालत में पेश किये कुछ दस्तावेजों का हवाला देते हुए कहा था- राम जन्मभूमि पर निर्मोही अखाड़ा का अधिकार है और उसे ही मालिकाना हक़ मिलना चाहिए| सुशिल कुमार जैन ने सर्वोच्च न्यायलय अपने जिरह के दौरान यह भी कहा कि मस्जिद के भीतर जो गुम्बद है वह भी निर्मोही अखाड़ा का ही है| सुनवाई वाले इस बेंच के सामने  अपने जिरह के दौरान जैन ने यह भी कहा था कि सैकड़ो वर्षों से विवादित भूमि के भीतर बने आँगन और राम जन्म-भूमि पर निर्मोही अखाड़े का कब्ज़ा था|

सुशिल जैन ने अपने जिरह में यह भी कहा कि निर्मोही अखाडा राज्यभर और राज्य से बहार भी कई मंदिरों को चलता है| वरिष्ठ वकील सुसील कुमार ने अदालत को यह भी विस्तार में बताया कि निर्मोही अखाड़े के कौन कौन से और क्या क्या कार्य है|

विवादित जमीन पर निर्मोही अखाड़े का दावा

निर्मोही अखाड़े के वकील ने पञ्च जजों वाली सर्वोच्च न्यायलय के संविधान पीठ के समक्ष जिरह में यह भी कहा था कि निर्मोही अखाड़े की अपील का सम्बन्ध सिर्फ विवादित भूमि के भीतरी अहाते से है, जिसमे भंडार गृह और सीता रसोई भी आते हैं|

जिस स्थान को आज राम जन्म-भूमि कहते हैं, उसपर निर्मोही अखाडा का ही कब्ज़ा है, 1932 के बाद से हीं मंदीर के द्वार से आगे मुसलमानों के आने पर मनाही थी| हिन्दू मात्र ही जन्म-भूमि पर पूजन के लिए जा सकते हैं|

सुशिल जैन ने अपने जिरह के दौरान सर्वोच्च न्यायलय से यह भी कहा कि निर्मोही अखाड़ा लम्बे समय से विवादित जगह पर राम लाला विराजमान का रख रखाव और पूजा करता रहा है| उन्होंने अपने दावे में कहा कि मंदीर ही जन्म-भूमि है इसलिए विवादित भूमि का मालिकाना हक निर्मोही अखाड़ा को ही मिलना चाहिए|

रामायण में सबूत

वरिष्ठ वाकील सुशिल कुमार जैन ने सर्वोच्च न्यायलय से बहस के दौरान यह भी कहा कि ' हम इस मुक़दमे को लम्बे समय से इस लिए लड़ रहें है क्युकी यह हमारी आस्था और भावनाओं से जुदा हुआ है| अखाड़े के पास विवादित भूमि का बहरी अहाता है इसलिए हमने इसके अंदरूनी आँगन के मालिकाना हक के लिए याचिका दायर किया| अखाड़े के वकील ने आगे कहा था कि हम अपने पूजा पाठ और प्रार्थना में बढ़ा आने पर ही यह मुकदमा लड़ने पर मजबूर हुए हैं| हमसे हमारा मालिकाना हक भी छिना गया और हमें इसके प्रबंधन से भी वंचित कर दिया गया|

अंदरूनी अहाते पर सुन्नी वक्फ बोर्ड के दावे के खिलाफ चुनौती देते हुए वरिष्ठ वकील सुशिल जैन ने यह तर्क दिया था की सम्पूर्ण क्षेत्र एक ही न्यायिक अहाता है, और सब उसी के दायरे में आते हैं, इस इस्थिति में सुन्नी वक्फ बोर्ड इसके अहाते पर अपना क़ानूनी रूप से नहीं जता सकता है|

राम जन्म-भूमि पर बहस

राम लला के तरफ से बहस करने वाले वरिष्ठ वकील के. परासरण थे| परासरण ने सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ के समक्ष तर्क रखा कि वाल्मीकि रामायण में कम से कम 3 बार इस बात का जिक्र किया गया है की राम का जन्म अयोध्या में हुआ था| परासरण के इस तर्क पर अदालत ने उनसे सवाल किया कि क्या इसा मसीह बेथलम में पैदा हुए थे, ये सवाल भी किसी अदालत केसमक्ष आया है?

इसपर वरिष्ठ वकील परासरण ने अदालत को जवाब देते हुए कहा था कि 'जन्म-भूमि ठीक वहि स्थान नहीं जहाँ जन्म हुआ था, वरण उसके आस पास के जमीन भी उसी दायरे में आते हैं| इसलिए पूरा इलाका ही जन्म-भूमि है इस बात पर कोई विवाद नहीं, हिन्दू और मुश्लिम दोनों ही पक्ष विवादित भूमि को जन्म-भूमि ही कहते है'|

अपनी बहस में वैद्यनाथ ने विलियम फिंच के भारत यात्रा का हवाला देने की इजाजत मांगी| विलियम फ़ीच 1608 से 1611 के बीच भारत यात्रा पर आयें थे|

वैद्यनाथ ने अपनी दलील में कहा कि मुग़ल काल में बादशाह अकबर और जहाँगीर के शाशन काल में अनेको यूरोपीय नागरिक भारत आयें इनमे वियम फिंच और विलियम हॉकिन्स भी थे| इन दोनों ने अपने यात्रा वृतांत में अयोध्या के बारे में भी लिखा था| राम लला के वकील वैद्यनाथ ने अपनी बातों पर जोर देते हुए अदालत से कहा की- 'हम ये कहना छह रहें है कि पंद्रहवीं और सोलहवीं सदी में भी लोग यही विश्वास करते थे कि राम लला का जन्म वहीँ हुआ है| इसलिए अदालत को इस तथ्य को संज्ञान में लेना चाहए, क्युकि ये इस बात का साबुत है कि वहां पहले से ही मंदीर मौजूद था|

राम लला और निर्मोही अखाड़े के तर्कों पर गंभीर ऐतराज जताते हुए मुश्लिम पक्ष ने भारतीय पुरातत्वा सर्वेक्षण की रिपोर्ट की खामियों के तरफ इशारा किया था|

मुश्लिम पक्ष की दलील

  एएसआई की रिपोर्ट पर मुश्लिम पक्ष के ऐतराज करने पर कोर्ट ने उनसे पूछा था कि अगर पुरातत्वा विभाग के सर्वेक्षण में खामियां थी तो मुश्लिम पक्षकारों ने निचली अदालत की सुनवाई के दौरान इसपर सवाल क्यों नहीं उठाया था?

इसपर मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने जवाब दिया था कि- निश्चित हमने रिपोर्ट पर सवाल उठाये थे परन्तु उच्च न्यायालय ने कहा था कि हम इसे जिरह के आखिरी में सुनेंगे, लेकिन, फिर वो कभी नहीं हुआ|

मुश्लिम पक्षकारों ने सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान बाबरनामा का हवाला दिया था और कहा की मस्जिद को बाबर ने बनवाया था| वकील राजीव धवन ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि 'मै बाबरनामा के हवाले से यह बात कह रहा हूँ| मै बाबरनामा और इसके अनुवादों के हवाले से बता रहा हूँ की मस्जिद को बाबर ने बनवाया था'| भूमि पर अपना दावा और मजबूत करने के लिए वकील राजीव धवन ने  बहुत शिलालेखों, दस्तावेजों और सबूतों को अदालत के समक्ष रखा| इनमे से कई में अरबी और फारसी भाषाओँ में अल्लाह लिखा हुआ था|

मुश्लिम पक्षकारों के वकील डॉ राजीव धवन ने अदालत से कहा कि "ये लोगों की आस्था ही है, जो उन्हें एक दुसरे जोडती है| अब सर्वोच्च न्यायलय को इस मामले में विचार करना है| हमें न्यायपालिका पर पूरा भरोषा है की वो इस मामले को निष्पक्षता से हल करेगी और इस बेहद ही संवेदनशील मामले पर फैसला सुनायगी, जिससे इस विवाद में पड़े सभी पक्षकारों का भला होगा|

राजीव धवन ने अदालत को इस बात से भी से भी आगाह किया की अगर वो राम लाला के इस दावे को मान लेती है टी इसका क्या असर होगा|  धवन ने कहा की जन्म भूमि का तर्क दो वजहों से दिया जा रहा है- एक तो मूर्तिपूजा के लिए दूसरा जमीं के लिए|

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