Paramveer Chakra Winner Yadunath Singh |
नायक यदुनाथ सिंह भारतीय सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित एक भारतीय सैनिक है| श्री सिंह भारत - पाकिस्तान युद्ध 1947 में अद्वितीय साहस और अद्भुत युद्ध कौशल का परिचय देते हुए वीर गति को प्राप्त हो गए थे| नायक यदुनाथ सिंह को या सम्मान 1950 में मरणोपरांत मिला था|
भारत-पाकिस्तान बँटवारे के साथ ही दोनों ही देशों में हिंसा, नफरत, युद्ध एवं अमानवीय घटनाओं का जैसे एक दौर ही चल पड़ा था| बँटवारे के बाद से पाकिस्तान ने अपने नापाक इरादे दिखाने शुरू कर दिया था| सन 1948 में पुरे कश्मीर पर कब्ज़ा करने के इरादे से पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया| इससे पहले की भारतीय सेना कुछ समझ पाती दुश्मन सेना ने झांगड़ पोस्ट पर कब्ज़ा कर लिया| झांगड़ पोस्ट पर कब्ज़ा जमा लेने के बाद शत्रु सेना का अगला निशाना नौशेरा सेक्टर था, परन्तु अब तक भारतीय सेना संभल चुकी थी और सेना के राजपूत बटालियन को आदेश मिल चुका था कि शत्रु सेना को झांगड़ पोस्ट से खदेड़ कर भगा दिया जाए| ब्रिगेडियर उस्मान के नेतृत्त्व में सेना के राजपूत बटालियन ने मोर्चा सम्हाला और जल्द ही पाकिस्तानी सेना को हार का सामना करते हुए पीछे हटने पर मजबूर होना पडा|
उधर वीर भारतीय सैनिकों से मिले जबर्दस्त हार से बौखलाई हुई पाकिस्तानी सेना ने 6 फरवरी 1947 टेंधर पोस्ट पर हमला कर दिया| इसी पोस्ट पर पाकिस्तानी सेना का मुकाबला नायक यदुनाथ सिंह से हुआ| श्री सिंह यहाँ पर अपने 9 साथियों के साथ कमान सम्हाले हुए थे| इन्ही 9 साथियों के साथ श्री सिंह ने पाकिस्तानी सेना के तीन बड़े हमलों को नाकाम किया| आखिरी हमले के दौरान नायक यदुनाथ सिंह सर और सिने में गोली लगी, गोली लगने के बाद भी श्री सिंह तब तक लड़ते रहे जब तक भारत की जीत सुनिश्चित नहीं हो गई|
प्रारंभिक जीवन
उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर स्थित खजुरी ग्राम में बीरबल सिंह राठौर के घर 21 नवम्बर 1916 को माता यमुना कुवंर की कोख से यदुनाथ सिंह का जन्म हुआ| 6 भाइयों और एक बहन में यदुनाथ सिंह तीसरे नंबर के संतान थे| यदुनाथ सिंह ने अपने ही ग्राम के एक विद्यालय में चौथी तक की| परिवार के आर्थिक हालात खराब होने के कारण श्री सिंह आगे की पढ़ाई नहीं कर सकें| बालक यदुनाथ का अधिकांश समय खेती में काम करते हुए बीतता था| खेल मनोरंजन के लिए उन्हें कुश्ती पसंद थी| कुश्ती-पहलवानी में भी यदुनाथ सिंह खूब नाम कमाया, उनके बहादुरी के क़िस्से पुरे इलाके में आम थी|
सैन्य जीवन
परिवार की आर्थिक स्थिति को देखते हुए यदुनाथ सिंह ने सेना में भारती होने का मन बनाया| द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान श्री सिंह को 21 नवंबर 1941 को फतेहगढ़ रेजिमेंटल सेंटर में ब्रिटिश भारतीय सेना के 7वें राजपूत रेजिमेंट में भर्ती किया गया था। सैन्य प्रशिक्षण पूरा करने के बाद यदुनाथ सिंह को रेजिमेंट के प्रथम बटालियन में तैनात किया गया| अभी बटालियन में तैनाती को एक वर्ष भी नहीं हुआ था कि यदुनाथ सिंह की बटालियन को बर्मा अभियान के दौरान अरकान अभियान में तैनाती मिली| यहाँ पर श्री सिंह ने अपने बटालियन के साथ मिल कर जापानियों के खिलाफ मोर्चा सम्हाला था| इस अभियान के दौरान सिपाही यदुनाथ सिंह ने अदम्य साहस और शौर्य का परिचय देते हुए जापानी सेना के खिलाफ शानदार लड़ाई लड़ा| इस वजह से यदुनाथ सिंह सेना के बड़े अधिकारीयों के नजर में आयें और उन्हें सम्मान के साथ देखा जाने लगा|
बर्मा के अराकान अभियान के बाद मिली पदोन्नति
अराकान अभियान में सिपाही यदुनाथ सिंह से जिस शौर्य एवं साहस का परिचय दिया उसके परिणामस्वरूप सिपाही यदुनाथ सिंह पदोन्नति प्राप्त कर नायक यदुनाथ सिंह बन गए| देश की आज़ादी के बाद देश को दो भागों में बाँट दिया गया, भारत और पाकिस्तान| बँटवारे दंश का दर्द अभी ख़त्म भी नहीं हुआ था की पाकिस्तान ने कश्मीर पर कब्ज़ा करने के इरादे से हमला कर दिया|
भारत - पाकिस्तान युद्ध
अक्टूबर 1947 में पाकिस्तानी सेना के हमलावर सैनिकों ने कश्मीर पर हमला | इस हमले के बाद भारतीय कैबिनेट की रक्षा समिति ने सेना के मुख्यालय को एक सैन्य कार्यवाई का दिशानिर्देश दिया| सेना ने कई अभियानों में हमलावरों को निर्देशित करने की योजना बनाई। एक ऐसे आपरेशन में 50 वीं पैरा ब्रिगेड, जिस में राजपूत रेजिमेंट जुड़ी हुई थी, को नौशेरा को सुरक्षित रखने हेतु सैन्य कार्यवाही के लिए तैनात किया गया था जिसके लिए झांगर में बेस बनाया गया था।
जिस समय भारतीय सेना द्वारा इन अभियानों के द्वारा कार्रवाई की जा रही थी कश्मीर का मौसम बिगड़ रहा था| खराब मौसम के कारण इस कार्रवाई पर बिलकुल प्रतिकूल असर पड़ा, नतीजतन 24 दिसंबर 1947 को पाकिस्तानी हमलावरों द्वारा आक्रमण कर झांगड़ बेस पर कब्ज़ा कर लिया गया| झांगड़ बेस युद्धक रणनीति के अनुसार नौशेरा सेक्टर पर कब्जा करने के लिए बेहद ही महत्वपूर्ण स्थान था| यहाँ से शत्रु सेना को मीरपुर और पुंछ के संचार लाइनों पर पूर्ण नियंत्रण मिल गया और साथ ही भारत पर लगातार हमला करते रहने के लिए एक आसान परन्तु महत्वपूर्ण स्टार्टिंग पॉइंट भी मिल गया|
अगले महीने भारतीय सेना के 50वीं पैर ब्रिगेड के कमांडिंग ऑफिसर मोहम्मद उस्मान के नेतृत्व में नौशेरा के उत्तर-पश्चिम में कई सैन्य अभियान चलाये गए जिसके फलस्वरूप न सिर्फ पाकिस्तानी सेना का आगे बढना रुक गया वरन उन्हें झांगड़ बेस पोस्ट को भी छोड़ कर पीछे भागना पड़ा| ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान की युद्धक रणनीति बहुत ही अच्छी थी, उन्होंने अपेक्षित आक्रमण का अनुमान पहले से ही बिलकुल सटीक लगा लिया था| होने वाले हमलों से निपटने के लिए उन्होंने आवश्यक व्यवस्था की थी| संभावित दुश्मनों और हमलों के दृष्टिकोण से उन्होंने छोटे छोटे समूहों में सैनिकों की टुकड़ियों को तैनात किया था|
झांगड़ बेस पर शत्रु सेना को अपमान जनक हार का सामना करना पडा था जिस वजह से पाकिस्तानी सेना बुरी तरह से बौखलाई हुई थी| इधर नौशेरा के उत्तर में स्थित टेंढर पोस्ट के सुरक्षा की जिम्मेदारी नायक यदुनाथ सिंह की बटालियन को मिली थी| श्री सिंह की बटालियन में कुल 9 सिपाही थे| 6 फरवरी 1948 की सुबह 06:40 बजे पाकिस्तानी आक्रमणकारियों ने टेंढर पोस्ट पर हमला कर दिया| ख़राब मौसम, धुंध और अंधेरे से पाकिस्तानी सेना को बहुत मदद मिल रही थी| दोनों पक्षों के बीच गोलीबारी होने लगी| धुंध और अंधेरे का फायदा उठा कर पाकिस्तानी सेना काफी करीब आ चुकी थी|जल्द ही टेंढर पोस्ट पर तैनात भारतीय सिपाहियों ने देखा कि बहुत बड़ी संख्या पाकिस्तानी सैनिक उनकी तरफ बढ़ रहें है|
टेंढर पोस्ट पर पाकिस्तानी सेना को धुल चटाया
झांगड़ बेस में मिली हार से बौखलाई पाकिस्तानी सेना किसी भी हाल में टेंढर पोस्ट को जितना चाहती थी, लिहाजा उन्होंने टेंढर पोस्ट के आसपास के सारे इलाके को आग के हवाले कर दिया ताकि धुएँ का फायदा उठा ज्यादा से ज्यादा भारतीय सैनिकों के करीब जा सकें| परन्तु इस पार भारतीय खेमे में थे नायक यदुनाथ सिंह! जो की अपने रणकौशल से शत्रु सेना की इस ओछी तरकीब से आसानी बच निकलने का रास्ता जानते थे| पाकिस्तानी सेना की ताबड़तोड़ गोलीबारी के बीच भी यदुनाथ लगातार अपने साथियों के पास जाते रहते और उनका हौसला बढ़ाते हुए योजनाबद्ध तरीके से शत्रु सेना की लाशें बिछाते आगे बढ़ते जा रहे थे| श्री सिंह की योजना काम आई और शत्रुसेना डर कर पीछे हटने पर मजबूर हो गई| मात्र 9 साथी सिपाहियों के साथ वीरता से लड़ते हुए यदुनाथ सिंह ने बिना किसी जान माल के क्षति के ही पाकिस्तानी सेना की पहले हमले को पूरी तरह से विफल कर दिया|
लग रहा था की सबकुछ कंट्रोल में है की तभी पाकिस्तान की नापाक हरकत फिर से शुरू हो गई| अचानक दूसरा हमला शुरू हुआ, इस बार पाकिस्तानी सेना और अधिक संख्या में थी और पुरे ताकत के साथ गोलियां बरसाने लगी| पाकिस्तानी सेना का यह हमला बहुत ही ज़ोरदार था और इस हमले में नायक यदुनाथ के चार साथी सिपाही शहीद हो गए, पर श्री सिंह घबराए नहीं वे दौड़ दौड़ कर अपने साथी सिपाहियों के पास जाते उनका हौसला बढ़ाते और सही दिशानिर्देश देते| इस बार भी यदुनाथ सिंह की योजना काम कर गई और एक बार फिर पाकिस्तानी सेना को मुँह की खानी पड़ी| नायक यदुनाथ सिंह ने दूसरी बार भी पाकिस्तान की सेना को पीछे धकेल दूसरा हमला भी विफल कर दिया परन्तु इस बार श्री सिंह के भी चार साथी वीर गति को प्राप्त हो गए|
आखिरी सांस तक युद्ध करते रहें, शत्रुसेना को रोके रखा
परमवीर नायक यदुनाथ सिंह वीरता, रणकौशल, युद्धनीति और सूझ बुझ को देखते हुए अब तक दुश्मन सेना यह समझ चुकी थी कि जब तक यदुनाथ सिंह सामने के मोर्चे पर है वे एक इंच भी आगे नहीं बढ़ सकते है, जितना तो फिर भी बहुत दूर की बात है| पाकिस्तान की नापाक सेना एकबार फिर से टेंढर पोस्ट पर हमला करने आई, पर इस बार उनका टारगेट नायक यदुनाथ सिंह थे| श्री सिंह भी इस बात को समझ चुके थे कि इस बार पाकिस्तानी सेना का टारगेट वे ही है, उन्होंने इस बारे में अपने कमांडिंग ऑफिसर ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान को भी सूचित कर दिया था साथ ही सारी स्थितियों की जानकारी भी दे दी थी| त्वरित रूप से श्री सिंह की मदद के लिए एक और सैन्य टुकड़ी को टेंढर पोस्ट की ओर रवाना कर दिया गया था पर जब तक मदद नहीं आ जाती स्वयं यदुनाथ सिंह व उनके बचे हुए साथियों को ही दुश्मन सेना को आगे बढ़ने से रोके रखना था|
मदद को आने वाली सैन्य टुकड़ी 20 किलोमीटर दूर थी और उनके आने तक नायक यदुनाथ सिंह को कैसे भी करके टेंढर पोस्ट को सुरक्षित रखना था| वे लड़ते रहें, एक एक कर उनके सारे साथी मारे गये| वे भाग भाग कर अपने साथियों के पास जाते और उनके हथियारों से फ़ायरिंग करते ताकि दुश्मन को ये लगे भारतीय खेमे में अभी भी बहुत से सैनिक बचे हुए है| इसी क्रम में एक गोली नायक यदुनाथ सिंह के सीर में आ लगी| इससे पहले की वो सम्हल पाते एक और गोली उनके सीने को चीरती हुई दूसरी तरफ निकल गई| शत्रु सेना को लगा कि वो जीत गए पर ये उनकी भूल थी, यदुनाथ सिंह के बन्दुक से तब तक गोलियां चलती रही जबतक की मदद को आने वाली भारतीय सैन्य टुकड़ी टेंढर पोस्ट आ नहीं गई| इस तरह शहीद हो कर भी परमवीर यदुनाथ सिंह ने पाकिस्तानी सेना की तीसरे हमले को पूरी तरह से विफल कर दिया और पाकिस्तानी सेना टेंढर पोस्ट से दूम दबा कर भागना पडा|
इन्हें भी पढ़े-
0 टिप्पणियाँ