परमवीर चक्र विजेता सिरीज भाग 3 : लांस नायक करम सिंह

परमवीर चक्र विजेता सिरीज भाग 3 : लांस नायक करम सिंह

लांस नायक करम सिंह
लांस नायक करम सिंह ऐसे पहले भारतीय सैनिक थे जिन्हें जीवित रहते हुए सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से अलंकृत किया गया था| वीर सैनिक श्री करम सिंह 1941 में सेना शामिल हुए थे बर्मा के तरफ से द्वितीय विश्वयुद्ध में लड़ते हुए उन्होंने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया जिसके लिए उन्हें ब्रिटिश भारत द्वारा मिलिट्री मैडल भी दिया गया था|
उन्होंने भारत-पाकिस्तान युद्ध 1947 में भी लड़ा था जिसमे टिथवाल के दक्षिण में स्थित रीछमार गली में एक अग्रेषित्त पोस्ट को बचाने में उनकी सराहनीय भूमिका के लिए सन 1948 में परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
वह 1947 में आज़ादी के बाद पहली बार भारतीय ध्वज को उठाने के लिए चुने गए पांच सैनिकों में से एक थे। श्री सिंह बाद में सूबेदार के पद पर पहुंचे और सितंबर 1969 में उनकी सेवा सेवानिवृत्त से पहले उन्हें मानद कैप्टन का दर्जा मिला।

प्रारंभिक जीवन

श्री उत्तम सिंह जो कि सिख जाट किसान थे के घर में 15 सितम्बर 1915 को ब्रिटिश भारत के पंजाब के बरनाल जिले के सहना ग्राम में हुआ था| बचपन में श्री क्रम सिंह भी अपने पिता के तरह एक किसान बनना कहते थे परन्तु प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अपने गाँव में वीर सैनिकों की गाथाओं को सुनकर उन्होंने भी सैनिक बनना ही पसंद किया और 1941 में अपने गाँव में ही प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद वे सेना में शामिल हो गयें|

सैन्य व्यक्तित्व और गौरव गाथा

15 सितम्बर 1941 को 26 वर्ष के उम्र में श्री करम सिंह ब्रिटिश भारत में सेना में शामिल हो गयें, श्री सिंह को ट्रेनिंग के लिए रांची भेजा गया जहाँ से उनकी नियुक्ति सिख रेजिमेंट के पहली बटालियन में कर दिया गया| श्री करम सिंह ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बर्मा के तरफ से युद्ध लड़ते हुए जिस शौर्य का प्रदर्शन किया एवं विकट परिस्थितियों में भी उन्होंने जिस प्रकार उचित एवं सही निर्णय लिया, सेना में उच्चाधिकारियों के नजर में वे सम्मानित और वीर योद्धा के रूप में अपनी छवि बनाने में कायम रहे|

भारत पाकिस्तान युद्ध

आजादी के बाद भारत को दो भागों, भारत और पाकिस्तान के रूप में बाँट दिया गया, इस समय कश्मीर एक स्वतंत्र देश था और इसके शासक राजा हरी सिंह थे| आज़ादी के तुरंत बाद पाकिस्तान ने कश्मीर पर हमला बोल दिया| 20 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर के टिथवाल पर हमला कर अपना पूर्ण अधिकार स्थापित कर लिया। यह क्षेत्र कुपवाड़ा सेक्टर में नियंत्रण रेखा पर स्थित था जो कि रणनीति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था। ऐसी स्थिति में राजा हरि सिंह ने भारत सरकार  को, अपनी सहायता हेतु, एक सहमति पत्र लिखा कि वह अपनी रियासत को, भारत में पूर्ण: विलय करना चाहता हैं। तत्पश्चात हमारे सैनिकों ने उक्त रियासत की सहायता के लिए कूच किया। हमारे सैनिकों की वीरता के समक्ष दुश्मनों ने अपने  घुटने टेक दिये। 23 मई 1948 को यह क्षेत्र पाकिस्तान से मुक्त करा लिया गया। उक्त क्षेत्र, महत्वपूर्ण होने के कारण पाकिस्तान पुन: टिथवाल क्षेत्र पर अपना कब्जा करना चाहता था। इसीलिए पाक सैनिकों ने  पुन: सेना पर त्वरित हमले आरंभ कर दिये। जिनका एक मात्र उद्देश्य दक्षिण टिथवाल स्थित रीछमार गली व पूर्व टिथवाल में नस्तचूर दर्रे पर, अपना पूर्ण कब्जा प्राप्त करना था।

करम सिंह की रण कौशल, नेतृत्व क्षमता

टिथवाल क्षेत्र में होने वाला यह युद्ध लंबा चला और पाकिस्तान की बौखलाहट बढती गई| लाख कोशिशों के बावजूद पाकिस्तान अपने नापाक इरादों में कामयाब नहीं हो रहा रहा था| लक्ष्य प्राप्त करने में असमर्थ पाकिस्तानी सेना ने विवश हो कर 13 अक्टूबर 1948 की रात टिथवाल के रिछ्मार गली में भयानक हमला शुरू कर दिया| इसी गली में लांस नायक करम सिंह एक अग्रिम टुकड़ी का नेतृत्व के रहें थे|

पाकिस्तान की ओर से, हो रही गोली बारी के चलते वो घायल अवस्था में भी, अपने कर्तव्य पर भू धर के भांति अडिग रहे। जिस हौसले से वो, अपने आप को संभाले हुये थे, उसी हौसले से उन्होंने  अपने सैनिकों का मनोबल बढ़ाये रखा। घायल अवस्था में भी, वह कभी एक मोर्चे का नेतृत्व करते, तो कभी दूसरे मोर्चे का जायजा लेते हुये, दुश्मनों पर ग्र्रेनेड से दर प्रति दर प्रहार करते रहे। पांचवें हमले के दौरान दुश्मन के, दो सैनिक, करम सिंह की टुकड़ी के नज़दीक पहुंच गये। मौका देखते ही, श्री सिंह ने खाई, फांदकर उनका बैटन से वध कर दिया। भारत के इस वीर योद्धा की सूझ-बूझ व नेतृत्व क्षमता ने दुश्मनों के अन्य, तीन हमलों को भी नाकाम सिद्ध कर दिया। भारतीय सैनिकों के हौसले इतने बुलंदियों पर थे, कि, समक्ष, प्रतिद्वंदी को  उलटे पैर दौड़ना पड़ा।

व्यक्तित्व सम्मान

14 मार्च सन 1944 को, उन्हें सैन्य पदक से सम्मानित किया गया।  
करम सिंह को, उनकी बटालियन सम्मान देने के लिए, सुसज्जित सिपाही के नाम से उच्चारित करती थी।
श्री सिंह, ऐसे सिपाही थे, जिन्हें स्वयं , जवाहर लाल नेहरू ने स्वतंत्रता की प्रथम रात्रि को तिरंगा उठाने के लिए चुना, जो कि एक सम्मान से  कम नहीं था।
लांस नायक करम सिंह (सैन्य क्र.सं. 22356), को 26 जनवरी 1950 को,  सर्वोच्च सैन्य पदक, परमवीर चक्र से नवाजा गया । 
पंजाब सरकार ने, करम सिंह जी को सम्मान देते हुये, अपने संगरूर जिला परिसर में एक भव्य स्मारक का निर्माण कराया।
करम सिंह 1969 में सेवानिवृत्त हो गये। उन्हें, उसी दौरान मानंद कैप्टन की उपाधि से नवाजा गया। 
20 जनवरी सन 1993 को लांस नायक करम सिंह जी की मृत्यु हो गई। जो पूर्ण: देश के लिए दुखद समाचार था, वो ऐसे  सैन्य व्यक्तित्व थे जिन्होंने जीवित रहते हुये, परमवीर चक्र प्राप्त किया।

   वास्तव में लांस नायक करम सिंह, शिखर हौसलों से मुश्किल हालातों को भी साधारण स्थिति में परिवर्तित करने की सुदृढ़ क्षमता रखते थे। यदि हमारी युवा पीढ़ी उनके व्यक्तित्व से प्रेरणा ले तो, वो अपने चरित्र जीवन को उज्ज्वल बना कर, नव भारत निर्माण को समर्पित कर सकेंगे।

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1 टिप्पणियाँ

  1. परमवीर चक्र सम्मान न सिर्फ सेना वरन सम्पूर्ण भारतीयों का गौरव चिन्ह है। जय हिंद।

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