परम्वर चक्र विजेता सीरिज भाग 2 : मेजर सोमनाथ शर्मा
सन 1950 में जब भारत पहली बार सेना के सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र देने की शुरुआत कर रहा था तब भारतीय सेना ने सेना की इस सर्वोच्च सम्मान के लिए मेजर सोमनाथ शर्मा का नाम आगे किया|
21 जून 1950 को मरणोपरांत मेजर सोमनाथ शर्मा को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. देश के इस वीर जवान के जांबाजी के किस्से रोंगटे खड़े करने वाले हैं. 1947 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में इन्होंने जिस वीरता का परिचय दिया था, उसका पूरा देश कायल है|
प्रारंभिक जीवन
मेजर सोमनाथ शर्मा का जन्म एक जाबांज मिलिट्री ऑफिसर अमरनाथ शर्मा के घर तत्कालीन पंजाब प्रान्त के कांगड़ा (कांगड़ा अब हिमाचल प्रदेश का अंग है) में 31 जनवरी 1923 को हुआ था| सोमनाथ शर्मा जी के भाइयो ने भी भारतीय सेना में अपना योगदान दिया, इतना ही नहीं इस परिवार की महिलायें भी सेना में थीं| श्री शर्मा की बहन भी सेना में ही कार्यरत थीं|
सोमनाथ शर्मा जी ने अपनी स्कूल की शिक्षा नैनीताल के शेरवूड कॉलेज में पूरी की | इसके बाद उन्होंने देहरादून के प्रिंस ऑफ़ वेल्स रॉयल मिलिट्री कॉलेज में दाखिला लिया,इसके बाद उन्होंने रॉयल मिलिट्री कॉलेज, सैंडहर्स्ट में भी अध्ययन किया| अपने बाल्यकाल में सोमनाथ शर्मा अपने दादा जी द्वारा सीखाय गए गीता के कृष्ण अर्जुन शिक्षा से अत्यंत प्रभावित थे|
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सैन्य कैरियर
सोमनाथ शर्मा जी की ब्रिटिश भारतीय सेना में न्युक्ति 19वीं हैदराबाद रेजिमेंट के आठवीं बटालियन में हुई थी| द्वितीये विश्व युद्ध के दौरान सोमनाथ शर्मा कर्नल के एस थिमैया के कमान में बर्मा में अराकान अभियान में जापानी सेना के खिलाफ युद्ध किया था| अराकन अभियान के दौरान उन्होंने जापानी सेना के खिलाफ युद्ध करते हुए अपने अद्म्या सहस एवं वीरता का प्रदर्शन किया था, उसे देखते हुए उन्हें मेन्शंड इन डिस्पैचैस में स्थान मिला था| अपने सैन्य कैरियर के दौरान, श्री सोमनाथ शर्मा, अपने कैप्टन के॰ डी॰ वासुदेव जी की वीरता से काफी प्रभावित थे। कैप्टन वासुदेव जी ने आठवीं बटालियन के साथ भी काम किया, जिसमें उन्होंने मलय अभियान में हिस्सा लिया था, जिसके दौरान उन्होंने जापानी आक्रमण से सैकड़ों सैनिकों की जान बचाई एवं उनका नेतृत्व किया।
अलग्योझा: प्रेमचंद
बैटल ऑफ़ बड़गाम
दाहिने हाथ में प्लास्टर चढ़ा था फिर भी जंग के मैदान में कूद पड़े
मेजर सोमनाथ शर्मा! "हीरो ऑफ़ बड़गाम बैटल"| आजादी मिलने के साथ ही अखंड भारत को तोड़ कर दो भागों, भारत और पाकिस्तान में बाँट दिया गया था| बँटवारे के बाद दोनों देशों के बीच युद्ध की शुरुआत हो चुकी थी, कबीलाई घुसपैठियों की आड़ में पाकिस्तानी सेना ने कश्मीर पर हमला बोल दिया था| 27 अक्टूबर 1947 को भारतीय सेना ने अपनी एक टुकड़ी कश्मीर घाटी की सुरक्षा के लिए भेजी|
उस वक्त मेजर सोमनाथ शर्मा की तैनाती कुमाऊँ बटालियन की डी कंपनी में थी| जब मेजर शर्मा के बटालियन को घाटी में तैनाती का आदेश मिला तब उनके दाहिने हाथ में हॉकी खेलते समय चोट लगने के कारण प्लास्टर चढ़ा था, मेजर शर्मा के चोटिल हाथ को देखते हुए उन्हें इस ऑपरेशन में शामिल नहीं किया गया था| परन्तु माँ भारती के इस वीर सपूत ने उच्चाधिकारियों से बात कर खुद को इस अभियान में शामिल करवाया और अपने बटालियन के साथ ही नाथ पोस्ट की और कुंच कर गए|
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700 आक्रमणकारियों से जब भीड़ गए मेजर शर्मा
3 नवम्बर 1947 के दिन बड़गाम क्षेत्र में गश्त के लिए तीन कंपनियों के एक बीच को तैनात किया गया, उनका उद्देश्य उत्तर से श्रीनगर के तरफ आने वाले घुसपैठियों की जाँच करना एवं उन्हें रोकना था| दोपहर हो चुका था और अभी तक शत्रु के ओर से कोई भी हलचल नहीं हुआ था सो दोपहर के 2 बजे तैनात तीन टुकड़ियों में से दो टुकडियां श्रीनगर लौट गईं| मेजर सोमनाथ शर्मा की टुकड़ी को 3 बजे तैनात रहने का आदेश दिया गया था|
अभी दोनों टुकड़ियों के निकले कुछ समय ही हुआ था की मेजर शर्मा की सैन्य टुकड़ी पर स्थानीय घरों से गोलीबारी शुरू हो गई| भारी गोली बारी झेलने के बावजूद मेजर शर्मा की टुकड़ी ने आम जान माल को नुक्सान ना हो इसलिए जवाबी कार्यवाई करने बच रहें थें|
जब मेजर की टुकड़ी स्थानीय घरों से होनेवाली गोली बारी से बच रहें थे तभी 700 हमलावरों का एक दस्ता जिसमे पाकिस्तानी सैनिक भी मौजूद थे पाकिस्तान से बड़गाम के तरफ बढ़ा| वे गुलमर्ग से बड़गाम के तरफ बढ़ रहें थे| मेजर सोमनाथ शर्मा की डी कंपनी तीन तरफ से दुश्मनों से घिरी थी और भारी मोर्टार एवं गोलीबारी झेलते हुए पुरे शौर्य के साथ शत्रु सेना से भीड़ रही थी| मेजर शर्मा की टुकड़ी ने बहादुरी से सामना किया और खुद मेजर शर्मा लगातार सैनिकों का हौसला बढ़ाते रहें|
एक हाथ में प्लास्टर तो दूसरे में मशीनगन ले डटे रहें मेजर शर्मा
एक हाथ में प्लास्टर चढ़ा हुआ था, फिर भी दूसरे हाथ में मशीनगन लिए एक साथ तीन सैन्य टुकड़ियों के हमले का संचालन संभल रहें थे| वे लगातार सैनिकों का हौसला बढ़ाते और कभी इस पोस्ट पर तो कभी उस पोस्ट पर लगातार भाग भाग सैनिकों को हथियार, गोलियां आदि पहुँचाते रहें| तीन तरफा मोर्टार हमले ने भारी नुक्सान पहुंचाया था फिर भी मेजर शर्मा और उनकी टुकड़ी दिलेरी से शत्रु का सामना कर रही थी| श्रीनगर और उसके एयरपोर्ट को बचाए रखने के लिए हमलावरों को यही रोके रखना जरूरी था|
भगवत गीता से हुई थी मेजर शर्मा के शव की पहचान
इसी दौरान आतंकियों का एक मोर्टार शेल गोल-बारूद के एक जखीरे पर गिरा. भयानक विस्फोट हुआ| इस भयानक हमले में मेजर सोमनाथ शर्मा वीरगति को प्राप्त हुए| शहीद होने से पहले उन्होंने अपने हेडक्वॉर्टर को संदेश भेजा था| उसमें उन्होंने लिखा था- 'दुश्मन हमसे सिर्फ 50 यार्ड्स की दूरी पर हैं| हमारी संख्या काफी कम है| हम भयानक हमले की जद में हैं| लेकिन हमने एक इंच जमीन नहीं छोड़ी है| हम अपने आखिरी सैनिक और आखिरी सांस तक लड़ेंगे|'
जब तक बचाव के लिए कुमाऊँ रेजीमेंट की पहली बटालियन वहां पहुँचती, काफी नुकसान हो चुका था| जंग के मैदान में एक भारतीय सैनिक के मुकाबले दुश्मनों की संख्या 7 थी| इसके बावजूद मेजर शर्मा की डी कंपनी ने 200 आतंकियों और पाकिस्तानी सैनिकों को ढेर कर दिया था| उन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया था|
इस मुठभेड़ में मेजर सोमनाथ शर्मा और एक जूनियर कमिशंड ऑफिसर के साथ 20 जवान शहीद हो गए| मेजर शर्मा की बॉडी तीन दिन बाद मिली| उनके शव को उनके पिस्टल के होल्डर और उनके सीने से चिपके भगवत गीता से पहचाना जा सका| मेजर सोमनाथ शर्मा की वीरता ने भारतीय सेना का सीना गर्व से चौड़ा कर दिया था| इसलिए जब सेना के पहले सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र का ऐलान हुआ तो सेना ने पहले नाम के तौर पर मेजर सोमनाथ शर्मा का नाम चुना|
1 टिप्पणियाँ
Bahut sundar sir..!!
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