बिहार के अब तक के मुख्यमंत्री सीरिज : भाग 2, बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह

बिहार के अब तक के मुख्यमंत्री सीरिज : भाग 2, बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह

                   आधुनिक बिहार के निर्माता कहे जाने वाले बिहार केसरी डॉ कृष्ण सिंह स्वतंत्रता संग्राम के अग्रगण्य सेनानियों में से रहें है| श्री सिंह का सम्पूर्ण जीवन देश एवं देशवासियों की सेवा के लिए समर्पित रहा| स्वतंत्र संग्राम में विजयी प्राप्ति से पूर्व श्री बाबु (1937 - 1945) भारत के अखंड बिहार राज्य के प्रधानमंत्री व स्वाधीनता प्राप्ति के बाद (1945 - 1961)  बिहार राज्य के मुख्यमंत्री थें|


स्वाधीनता प्राप्ति के बाद श्री बाबू ने आधुनिक बिहार के नवनिर्माण के लिए जो कुछ भी किया बिहार एवं बिहारी सदा उनके ऋणी रहेंगे| वह वैचारिक रूप से उदार एवं व्यवहारिक और चारित्रिक रूप से निष्कलंक, बुद्ध की करुना एवं गाँधी के सदाचार से अलंकृत थे|

श्री कृष्ण सिंह का प्रारंभिक जीवन 

बिहार केसरी श्री कृष्ण सिंह का जन्म उनके ननिहाल में बिहार के नवादा जिला के खानवा ग्राम में 21 ओक्टुबर 1887 को हुआ था| उनके पैत्रिक ग्राम का नाम मौर्य है जो तत्कालीन समय में मुंगेर जिला के बारबिघा के पास है, जो अब वर्तमान में शेखपुरा जिला का हिस्सा है| उनके पिता का नाम हरिहर सिंह था जो की साधारण, धार्मिक एवं मध्यम श्रेणी परिवार से सम्बन्ध रखते थे| श्री बाबू की माँ जो की एक धार्मिक विचारधारा वाली महिला थी श्री बाबू के बचपन में ही प्लेग के चपेट में आकर काल का ग्रास बन गईं थी| उनकी प्रारंभिक पढाई गाँव के ही प्राथमिक विद्यालय में हुई थी बाद में स्कॉलर शिप पा कर उनका नामांकन मुंगेर के जिला स्कूल में हुआ| श्री बाबू बचपन से ही कुशाग्र विद्यार्थी थे|  1906 ई. में इंट्रेंस की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास कर वे पटना कौलेज के छात्र बनें| अपने अध्ययनकाल में आपने कलकत्ता से 1913 में एम ए की डिग्री ली और बी. एल. की डिग्री 1914 में ली| 

सत्याग्रह एवं आन्दोलन

अपने अन्य मेधावी सहपाठियों से बिलकुल भिन्न श्री बाबु की सोंच प्रारम्भ से हीं सरकारी नौकरी के प्रतिकूल थी| विद्यार्थी जीवन से ही श्री कृष्ण बाबु  राष्ट्र एवं समाज सेवा के ओर प्रवृत हुए|  वे स्वदेशी आन्दोलन, बंगभंग आदि तत्कालीन राजनितिक आंदोलनों से अतिप्रभावित थे| उनकी विचारों पर बाल गंगाधर तिलक तथा अरविन्द जैसे विचारको के विचारों का घोर प्रभाव था| अतः अपने छात्र जीवन से ही श्री बाबू एक जननेता के रूप में बिहार के धरती पर प्रकट हो चुके थे|
महात्मा गाँधी से श्री कृष्ण सिंह की पहली व्यक्तिगत भेंट 1911 ई. में हुई थी, इसके बाद से श्री बाबु के जीवन यात्रा को एक नया आयाम मिला और वे महात्मा गाँधी के कट्टर अनुयाई बन गए| श्री बाबू एक उत्तम कोटि के वक्ता थे और अपने इसी वरदान एवं शिंह गर्जना से उन्होंने अपना राजनैतिक परिप्रेक्ष्य तैयार किया|
श्री बाबु ने पहली जेल यात्रा 1911 ई. में  ब्रिटेन के युवराज प्रिंस ऑफ़ वेल्स के भारत यात्रा के विरुद्ध बहिस्कार आन्दोलन के क्रम में की थी| वर्ष 1927 में वे विधान परिषद् के सदस्य बने और 1929 में बिहर प्रदेश कांग्रेस कमिटी के महासचिव बने| गढ़पुरा के नमक सत्याग्रह में 1930 में श्री बाबू ने एक बड़ी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई| इस आन्दोलन को दबाने के क्रम में श्री बाबू को 6 माह के लिए फिर से जेल में बंद कर दिया गया| इसके बाद उन्होंने सविनय अवज्ञा आन्दोलन में भी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया जिसके कारण उन्हें 2 वर्ष तक जेल में ही बिताने पड़े, बाद में गाँधी-इरविन समझौता के बाद उन्हें छोड़ दिया गया| 1941 में गाँधी जी ने उन्हें उनके व्यक्तिगत सत्याग्रह के लिए बिहार का प्रथम सत्याग्रही न्युक्त किया था|

बिहार के विकास में सहयोग

बिहार केसरी श्री कृष्ण सिंह 1937 में पहली बार कांग्रेस के मंत्रालय में बिहार के प्रधानमन्त्री से ले कर स्वाधीन भारत के बिहार राज्य में 1961 तक मुख्यमंत्री के रूप में उनकी मृत्यु तक सत्ता में थे| श्री सिंह के कार्यकाल में बिहार की अर्थव्यवस्था पुरे देश के मुकाबले दुसरे स्थान पर थी| एक ओर जहाँ बिहार में जमींदारी प्रथा समाप्त हुई वहीँ दूसरी ओर उनके कार्यकाल में बिहार में एशिया का सबसे बड़ा इंजीनियरिंग ऊद्योग, भारत का सबसे बड़ा बोकारो इस्पात प्लांट, हैवी इंजीनियरिंग कार्पोशन, देश का पहला खाद कारखाना सिंदरी में, बरौनी रिफैनरी, मैथन हेडेल पॉवर स्टेशन, बरौनी थर्मल पॉवर प्लांट, पतरातू थर्मल पॉवर प्लांट एवं और भी बहुत सारी नदी घाटी परियोजनाओं को शुरू और स्थापित किया गया|वास्तव में, बिहार उस कालक्रम में भारत का सबसे शीर्ष राज्य बन गया था|

सांस्कृतिक एवं सामाजिक क्षेत्र में योगदान

श्री कृष्ण ने राज्य के सांस्कृतिक, सामाजिक एवं शैक्षणिक विकास में एक बहुत बड़ा एवं महत्वपूर्ण योगदान दिया| उन्होंने राज्य के छात्रो के लिए पटना में अनुग्रह नारायण सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल स्टडी, बिहारी छात्रों के लिए कोलकाता में राजेंद्र छात्र निवास, बिहार सगीत नृत्य नाट्य परिषद्, पटना में संकृत कॉलेज, पटना में रविन्द्र भवन, राजगीर वेणु वन विहार में भगवान् बुद्ध की प्रतिमा इत्यादि जैसे अनेक निर्माण करवाए थे|

आज का विकासोन्मुखी बिहार, बिहार केसरी श्री बाबू जैसे महान शिल्पी की ही देन है जिन्होंने अपने कर्मठ एवं कुशल करों द्वारा राज्य के बहुमुखी विकास की आधारशिला रखी थी|


श्री बाबु के निधन होने पर राष्ट्र कवी दिनकर ने कहा था, 'शाशक के रूप में श्री बाबू की अनेक विशेषताओं में एक विशेषता ये भी थी कि वे अल्प्सख्यकों के हितों के प्रबल पोषक और पहरेदार थे|' 


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