16 ओक्टुबर: विश्व खाद्य दिवस (World Food Day) पर ख़ास

16 ओक्टुबर: विश्व खाद्य दिवस (World Food Day) पर ख़ास



आजादी के लगभग 74 वर्ष हो चुकें है और आज भी लगातार भारत में कुपोषण और भुखमरी जनमानस के लिए एक अबूझ पहेली की तरह अपना मुह बाय खड़ीं है| सरकार के तमाम दावे और नई नई योजनाय अपना काम करने में लगातार विफल हो रहीं है| आज भी हम एक ऐसे देश में रहते हैं जनता की जनता भूख और भीषण कुपोषण के साय तले जीने को मजबूर है| आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि दुनियाभर में भूखे लोगो की लगभग 23 प्रतिशत आबादी अकेले भारत में ही रहती है|

हो सकता हमारी यह बात देश के एक बहुत बड़े और विशाल तबके को बुरा लगे परन्तु विश्व से आयें आंकड़े यही सच्चाई बताते हैं कि देश में भुखमरी की समस्या कगातर बढती जा रही है| भारत को विश्व में एक महाशक्ति बनाने के तमाम दावों के बीच एक ऐसी रिपोर्ट है जो हमारी हकीकत और झूठे जुमलेबाजी की हकीकत की पोल खोल रही है|

इंटरनेशनल फ़ूड पोलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के द्वारा किया गया वैश्विक भूख सूचकांक द्वारा जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है की दुनिया भर के 119 विकासशील देशों में भारत का स्थान स्थान 103 है| बताते चलें की वर्ष 2017 में भारत का स्थान 100 और वर्ष 2016 में भारत का स्थान 97 था| यानी की इस मामले भारत की इस्थिति वर्ष दर वर्ष खराब होती गई है और अब भारत को एक 'अतिगंभीर श्रेणी' में रखा गया है|

आईएफपीआरआई द्वारा जारी रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत पुरे एशिया में सिर्फ अफगानिस्तान और पाकिस्तान ही ऐसे देश है जो भारत से पीछे है, मतलब स्पस्ट है की समूचे एशिया में भारत की रैंकिंग तीसरे सबसे ख़राब स्थान पर है|

भूख से लड़ने के मामले में भारत अपने आस पास के पडोसी देशों से बहुत पीछे चला गया है, हैंगर इंडेक्स द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार बांग्लादेश 88वे स्थान पर है, श्रीलंका 84वे, म्यांमार 74वे, नेपाल 72वे और चीन 29वे स्थान पर है|

दरअसल वैश्विक भूख सूचकांक मुख्यतः चार बातो को देखते हुए तैयार किया जाता है, ये चार बाते है- आबादी में कुपोषण से ग्रस्त/शिकार लोगों की संख्या, अविकसित बच्चों की संख्या, बाल मृत्युदर और अपने उम्र की तुलना में कम लम्बे/कद वाले या अपनी उम्र की तुलना में कम वजन वाले बच्चों की संख्या|

ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में पांच वर्ष तक उम्र के बच्चो की कुल संख्या का पांचवा हिस्सा अपनी उम्र या लाम्बाई के मुकाबले बेहद ही कमजोर पाया गया है, इतना ही नहीं इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में पांच वर्ष के बच्चो की कुल आबादी का एक तिहाई हिस्सा अपने उम्र के मुकाबले कम लंबा है| आईएफपीआरआई की इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है की भारतीय महिलाओं का हाल भी बहुत बुरा है, भारत में युवा उम्र की 51 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया से ग्रसित हैं, यानि की उनमे खून की कमी है है|

यहाँ हम आपको बताना चाहेंगे कि सरकारी आंकड़े भी बहुत विलग नहीं है, 2017 में तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने संसद में यह बयां दिया था कि भारत में 93 लाख से भी ज्यदा बच्चे गंभीर रूप से कुपोषण का शिकार/ग्रसित हैं|

भारत सरकार की एक एजेंसी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में 21 प्रतिशत से अधिक बच्चे कुपोषण का/ग्रषित है, यहाँ यह गौरतलब है की विश्व भर में ऐसे मात्र तीन देश है दक्षिण सूडान, जिबूती और श्रीलंका जहाँ 20 प्रतिशत से अधिक बच्चे कुपोषण का शिकार हैं| भारत को भी अगर इस सूचि जोर दिया जाय तो दुनिया में ऐसे चार देश है|

बहरहाल जो भी हो सरकार की दावों की पोल खोलती यह कोई एक अकेली रिपोर्ट नहीं है, वर्ष 2016 में 'राष्ट्रीय पोषण निगरानी ब्यूरो' के द्वारा करवाए गए एक सर्वेक्षण में एक चौका देने वाली बात सामने आई भारत के ग्रामीण इलाके में जहां भारत की कुल आबादी की 70 प्रतिशत जनता रहती है, वहां लोग स्वास्थ्य रहने के लिए आवश्यकता से कम पोषक का उपभोग करते हैं| इस रिपोर्ट के हवाले से बताया गया कि ग्रामीण भारतियों का खान पान जितना 40 वर्ष पूर्व हुआ करता था अब उससे भी कम हो गया है| इस रिपोर्ट में बताया गया कि औसतन 3 साल तक के बच्चे को 300 मिलीलीटर दूध पीना चाहिए जबकि भारत में सिर्फ 80 मिलीलीटर ही बच्चो को मिल रहा है|

इस तरह के आंकड़े ना सिर्फ हमारे आर्थिक विकास और चमक दमक के खोखले दावो की असलियत को सामने लाकर रख देती है बल्कि सरकारी संगठनो और राजनैतिक पार्टियों को एक प्रेना भी देती है की उन्हें अपने कार्य को और अधिक सही तरीके ठोस उपायों के साथ करना होगा| परन्तु झूठे दावों की पोल खोलते ऐसे रिपोर्ट को आधार बना सरकार वास्तविक सुधार करने के स्थान पर इस संस्था को ही 2017 में बंद कर दी|

हालात जो भी हैं और जैसे भी हैं  एक बात तो स्पस्ट है की देश में वर्ष दर वर्ष भुखमरी और कुपोषण बढ़ता जा रहा है और सरकारें इस दिशा में ठोस कदम उठाने असमर्थ सबित हो रहीं है| इस लेख का अंत इस उम्मीद से करता हूँ की जल्द ही हालात सुधरेंगे और भारत का वैश्विक रैंक ठीक होगा| 

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