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Bindeshwari Prasad Mandal- 7th CM of Bihar and Father of the Mandal Commission |
बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल का जन्म, परिवार और प्रारंभिक शिक्षा :
जन्म और गांव का परिवेश
पारिवारिक परिचय
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राम जी मण्डल उर्फ रासबिहारी मण्डल। बी. पी। मण्डल के पिता |
बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल के पिता रामजी मंडल एक साधारण किसान थे।
वे खेत जोतकर, मेहनत-मजदूरी करके परिवार का भरण-पोषण करते थे। उनकी आर्थिक स्थिति बहुत मजबूत नहीं थी, लेकिन वे मेहनती, ईमानदार और जमीन से जुड़े इंसान थे।
👉 रामजी मंडल की यही सादगी और मेहनत ने उनके पुत्र बिंदेश्वरी को भी जीवन के हर क्षेत्र में संघर्ष करना सिखाया।
मां एक गृहिणी थीं।
गांव की औरतों की तरह वे भी खेतों में हाथ बँटातीं और घर संभालतीं।
परिवार में धार्मिक और नैतिक मूल्यों का पालन सख्ती से होता था।
इसी वजह से बिंदेश्वरी मंडल बचपन से ही अनुशासित, ईमानदार और सहनशील बने।
बचपन और संस्कार
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बी। पी। मण्डल का पारिवारिक चित्र। परंतु इसमे मतभेद है |
ये भी देखें : - बिहार के मुख्यमंत्रियों की सूची का विडिओ
प्रारंभिक शिक्षा
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बिनदेश्वरी प्रसाद मण्डल और उनका पहला विद्यालय |
गांव के ही एक छोटे से प्राथमिक विद्यालय से उनकी शिक्षा की शुरुआत हुई।
उस समय शिक्षा प्राप्त करना आसान नहीं था।
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स्कूल जाने के लिए कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ता।
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किताबें और कॉपी खरीदने के लिए पैसे की तंगी रहती।
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कभी-कभी परिवार की आर्थिक दिक़्क़तों की वजह से पढ़ाई बीच में रुकने की नौबत भी आती।
लेकिन बिंदेश्वरी मंडल के माता-पिता का मानना था कि शिक्षा ही वह रास्ता है जो उनके बेटे का भविष्य बदल सकता है।
इसलिए उन्होंने हर हाल में बिंदेश्वरी की पढ़ाई जारी रखी।
👉 बिंदेश्वरी मंडल शुरू से ही एक होनहार और मेहनती छात्र थे।
वे पढ़ाई में आगे रहते और शिक्षकों का सम्मान करते।
ग्रामीण जीवन का प्रभाव
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Anant World NBT. बी। पी. मण्डल के समकालीन का बिहार |
गांव में पले-बढ़े होने के कारण बिंदेश्वरी मंडल ने बचपन से ही ग्रामीण समाज की वास्तविक तस्वीर देखी।
उन्होंने देखा कि कैसे किसान वर्ग अपनी मेहनत के बावजूद गरीबी और अभाव में जीता है।
कैसे जातिगत भेदभाव और ऊँच-नीच की दीवारें लोगों को तोड़ती हैं।
👉 यही अनुभव आगे चलकर उनके जीवन का आधार बने।
उन्होंने निश्चय किया कि वे समाज में बराबरी और न्याय की लड़ाई लड़ेंगे।
शिक्षा के प्रति दृढ़ निश्चय
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बी। पी. मण्डल का शिक्षा का संकल्प |
प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने उच्च शिक्षा पाने का निश्चय किया।
उस समय मधेपुरा जैसे पिछड़े इलाके से निकलकर उच्च शिक्षा लेना आसान नहीं था।
लेकिन उनकी जिद और मेहनत ने रास्ता बना दिया।
परिवार भले ही गरीब था, लेकिन उन्होंने अपने बेटे के सपनों को पंख देने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
रामजी मंडल अक्सर कहा करते:
"बेटा, पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बनना। खेत तो हमेशा रहेंगे, लेकिन शिक्षा तुम्हें समाज में इज्जत और पहचान दिलाएगी।"
यह वाक्य बिंदेश्वरी मंडल के लिए जीवन भर प्रेरणा का स्रोत बना रहा।
बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल का जन्म और बचपन भले ही गरीबी और संघर्ष में बीता, लेकिन इन्हीं परिस्थितियों ने उनके व्यक्तित्व को मजबूत बनाया।
गांव की संकरी गलियों, खेतों की मेड़ों और संघर्षशील परिवार ने उन्हें वह जज़्बा दिया, जिसकी वजह से वे आगे चलकर बिहार के मुख्यमंत्री बने।
उच्च शिक्षा, छात्र जीवन और छात्र राजनीति से जुड़ाव
उच्च शिक्षा की ओर कदम
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Anant world NBT, B.P. Mandal's way of Patna University. |
प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल ने ठान लिया कि वे किसी भी हाल में उच्च शिक्षा हासिल करेंगे।
उस समय मधेपुरा और आसपास का क्षेत्र शिक्षा के लिहाज से बहुत पिछड़ा था। गाँवों से निकलकर बच्चे मुश्किल से ही कॉलेज तक पहुँच पाते थे।
लेकिन मंडल के भीतर पढ़ाई के प्रति गहरी लगन थी।
वे जानते थे कि केवल शिक्षा ही वह साधन है, जो समाज में बदलाव ला सकता है और वंचित तबके को सशक्त बना सकता है।
इन्हीं सपनों को लेकर उन्होंने पटना विश्वविद्यालय का रुख किया।
पटना विश्वविद्यालय उस दौर में बिहार ही नहीं बल्कि पूरे पूर्वी भारत का प्रमुख शैक्षणिक संस्थान था।
यहाँ पढ़ना आसान नहीं था—आर्थिक कठिनाइयाँ, सामाजिक दबाव और पारिवारिक जिम्मेदारियाँ उनके सामने लगातार चुनौती बनी रहीं।
पटना विश्वविद्यालय का अनुभव
पटना पहुँचने के बाद बिंदेश्वरी मंडल का जीवन एक नए मोड़ पर आया।
गाँव से निकलकर शहर के वातावरण में कदम रखते ही उन्हें यह महसूस हुआ कि शिक्षा केवल किताबों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति को नए विचार, नए दृष्टिकोण और सामाजिक चेतना से भी जोड़ती है।
यहाँ पढ़ाई के साथ-साथ उन्हें विभिन्न छात्र आंदोलनों और राजनीतिक गतिविधियों को करीब से देखने का मौका मिला।
पटना विश्वविद्यालय उस समय स्वतंत्रता आंदोलन और समाज सुधार आंदोलनों का गढ़ बन चुका था।
👉 बिंदेश्वरी मंडल के व्यक्तित्व पर इस माहौल का गहरा असर पड़ा।
छात्र जीवन में संघर्ष
हालांकि विश्वविद्यालय में पढ़ाई करना उनके लिए आसान नहीं था।
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आर्थिक तंगी के कारण उन्हें कई बार फीस भरने में कठिनाई हुई।
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कई बार उन्होंने किताबें और कॉपियाँ दोस्तों से उधार लीं।
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कभी-कभी पेट भरने तक की समस्या खड़ी हो जाती।
लेकिन इन सबके बावजूद वे पढ़ाई और छात्र गतिविधियों में पीछे नहीं हटे।
वे समझ चुके थे कि जीवन में आगे बढ़ने के लिए संघर्ष करना ही पड़ेगा।
👉 उनके भीतर यह विश्वास और भी गहरा होता गया कि शिक्षा प्राप्त कर वे समाज के वंचित वर्गों की आवाज बन सकते हैं।
छात्र राजनीति से जुड़ाव
पटना विश्वविद्यालय का माहौल उन्हें छात्र राजनीति की ओर खींच लाया।
छात्र जीवन में ही उन्होंने महसूस किया कि केवल व्यक्तिगत सफलता से समाज में बदलाव नहीं आएगा।
जरूरी है कि वंचित, गरीब और पिछड़े तबके की आवाज को सामूहिक रूप से उठाया जाए।
उन्होंने छात्र संघों और संगठनों में सक्रिय भागीदारी शुरू की।
उनकी भाषण शैली, सादगी और संघर्षशील स्वभाव ने उन्हें छात्रों के बीच लोकप्रिय बना दिया।
उनके छात्र राजनीति से जुड़ाव की कुछ खास बातें:
जातीय असमानता के खिलाफ आवाज़ –
उन्होंने देखा कि समाज में ऊँची जातियों को ज्यादा अवसर मिलते हैं जबकि पिछड़ी और गरीब जातियों के छात्र पीछे छूट जाते हैं।
मंडल ने इसका खुलकर विरोध किया।-
शिक्षा के अधिकार पर ज़ोर –
उनका मानना था कि हर वर्ग को शिक्षा का बराबर अधिकार होना चाहिए।
उन्होंने छात्र आंदोलनों के माध्यम से गरीब छात्रों के लिए छात्रवृत्ति और सुविधाओं की मांग उठाई। -
संगठन क्षमता –
वे छात्रों को संगठित करने में माहिर थे।
वे अपने साथियों को प्रेरित करते और उन्हें न्याय के लिए खड़ा होना सिखाते।
स्वतंत्रता आंदोलन की छाप
छात्र जीवन में ही उनके भीतर सामाजिक चेतना का विकास हो चुका था।
वे समझ चुके थे कि समाज में व्याप्त अन्याय और असमानता को दूर करना ही उनकी असली जिम्मेदारी है।
उनका कहना था:
"अगर समाज में कुछ वर्ग हमेशा हाशिये पर रहेंगे, तो लोकतंत्र का कोई मतलब नहीं बचेगा।"
👉 यह सोच उनके राजनीतिक करियर का आधार बनी।
छात्र राजनीति से मुख्य राजनीति की ओर
छात्र जीवन की सक्रियता ने बिंदेश्वरी मंडल को एक नई पहचान दिलाई।
वे केवल एक साधारण छात्र नहीं रहे, बल्कि एक आंदोलनकारी और संगठनकर्ता बन चुके थे।
यही कारण था कि पढ़ाई पूरी करने के बाद जब उन्होंने मुख्यधारा की राजनीति में कदम रखा, तो उनके पास पहले से ही एक मजबूत जनाधार और संगठनात्मक अनुभव था।
बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल का छात्र जीवन उनके राजनीतिक करियर की नींव साबित हुआ।
आर्थिक तंगी और सामाजिक दबावों के बावजूद उन्होंने शिक्षा हासिल की और छात्र राजनीति से जुड़कर गरीबों, पिछड़ों और वंचितों की आवाज़ उठाई।
👉 यही अनुभव आगे चलकर उन्हें बिहार का मुख्यमंत्री बनने की दिशा में ले गया।
मुख्य राजनीति में प्रवेश, संघर्ष और मुख्यमंत्री बनने की असली कहानी
मुख्य राजनीति में पहला कदम
उच्च शिक्षा और छात्र राजनीति के अनुभवों ने बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल को राजनीति के लिए तैयार कर दिया था।
वे जानते थे कि केवल भाषण देने या छात्र आंदोलनों में शामिल होने से समाज में व्यापक परिवर्तन नहीं होगा।
जरूरी था कि वे मुख्यधारा की राजनीति में उतरें और नीतिगत स्तर पर बदलाव लाएँ।
आज़ादी के बाद भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना हुई और बिहार की राजनीति जातीय समीकरणों के इर्द-गिर्द घूमने लगी।
इसी माहौल में बिंदेश्वरी मंडल ने राजनीति की राह चुनी।
शुरुआती संघर्ष और चुनौतियाँ
वे किसी बड़े घराने से नहीं थे, न ही उनके पास आर्थिक संसाधनों की कमी थी।
उनकी ताकत केवल जनता का विश्वास और उनका संघर्षशील व्यक्तित्व था।
शुरुआती चुनौतियाँ थीं:
जातीय भेदभाव –
राजनीति में ऊँची जातियों का दबदबा था। पिछड़ी जाति से आने वाले बिंदेश्वरी मंडल को शुरुआत में गंभीरता से नहीं लिया जाता था।-
आर्थिक अभाव –
चुनाव लड़ने और राजनीतिक गतिविधियों में हिस्सा लेने के लिए धन की आवश्यकता होती थी, जो उनके पास नहीं था। -
राजनीतिक विरोध –
स्थापित नेताओं को यह स्वीकार करना मुश्किल था कि एक साधारण किसान का बेटा राजनीति में अपनी पहचान बनाए।
👉 लेकिन बिंदेश्वरी मंडल ने हार नहीं मानी।
उन्होंने अपने जनाधार और संगठन क्षमता पर भरोसा किया और धीरे-धीरे राजनीति में अपनी जगह बनानी शुरू की।
जनता के बीच लोकप्रियता
मंडल का सबसे बड़ा हथियार था – उनकी जनप्रियता।
वे गाँव-गाँव जाकर लोगों से सीधे संवाद करते।
वे किसानों की समस्याएँ सुनते, मजदूरों की परेशानियाँ समझते और गरीब परिवारों के दुख-दर्द में शामिल होते।
👉 यही वजह थी कि धीरे-धीरे वे जनता के चहेते नेता बन गए।
लोग उन्हें अपना सच्चा प्रतिनिधि मानने लगे।
विधान सभा में प्रवेश
1952 में हुए पहले आम चुनावों में बिंदेश्वरी मंडल ने अपनी किस्मत आज़माई।
हालांकि शुरुआती दौर में उन्हें बहुत बड़ी सफलता नहीं मिली, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने चुनावी राजनीति में अपनी पकड़ बनानी शुरू कर दी।
उनकी ईमानदारी, संघर्षशीलता और जनता के मुद्दों पर सीधा फोकस ने उन्हें राजनीतिक दलों की नजरों में भी महत्वपूर्ण बना दिया।
कांग्रेस से दूरी और समाजवादी विचारधारा की ओर
बिंदेश्वरी मंडल शुरू में कांग्रेस पार्टी के साथ जुड़े, लेकिन जल्द ही उन्होंने महसूस किया कि कांग्रेस में वंचित और पिछड़े वर्गों की आवाज़ को पर्याप्त महत्व नहीं दिया जा रहा है।
उनका झुकाव समाजवादी विचारधारा की ओर बढ़ा।
समाजवादी नेताओं जैसे डॉ. राम मनोहर लोहिया और आचार्य नरेंद्र देव से वे गहराई से प्रभावित थे।
👉 मंडल का मानना था कि राजनीति का असली उद्देश्य सामाजिक न्याय और समानता स्थापित करना होना चाहिए।
राजनीतिक अस्थिरता और अवसर
1960 और 70 का दशक बिहार की राजनीति के लिए बेहद अस्थिर था।
सरकारें बार-बार गिर रही थीं और नए गठबंधन बन रहे थे।
इसी अस्थिर माहौल ने बिंदेश्वरी मंडल जैसे नेताओं के लिए अवसर पैदा किया।
उनकी छवि एक साफ-सुथरे, ईमानदार और संघर्षशील नेता की बन चुकी थी।
ऐसे समय में राजनीतिक दलों को उनकी जरूरत महसूस हुई।
मुख्यमंत्री बनने की असली कहानी
बिहार में 1967 का विधानसभा चुनाव ऐतिहासिक था।
कांग्रेस, जो लंबे समय से सत्ता में थी, पहली बार गंभीर चुनौती का सामना कर रही थी।
विभिन्न विपक्षी दलों ने मिलकर संयुक्त विधायक दल (SVD) का गठन किया।
बिंदेश्वरी मंडल इस गठबंधन में एक महत्वपूर्ण चेहरा थे।
उनकी लोकप्रियता और संगठन क्षमता को देखते हुए उन्हें मुख्यमंत्री पद के लिए चुना गया।
1968 में वे बिहार के 7वें मुख्यमंत्री बने।
क्योंकि पहली बार एक साधारण किसान परिवार से निकला हुआ व्यक्ति राज्य की सत्ता के सर्वोच्च पद पर पहुँचा था।
मुख्यमंत्री रहते हुए उनकी प्राथमिकताएँ
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Anant World NBT. B.P. Mandal's main vision as CM of Bihar. |
उनकी प्राथमिकताएँ थीं:
किसानों की स्थिति सुधारना।
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पिछड़े और वंचित वर्गों को शिक्षा और रोजगार में अवसर दिलाना।
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प्रशासन में पारदर्शिता और भ्रष्टाचार पर नियंत्रण।
जातिगत भेदभाव को यथासंभव काम कर सामाजिक समानता की भवन को जागृत एवं सुदृढ़ करना।
👉 उनका कार्यकाल लंबा नहीं रहा, लेकिन उनकी नीतियों ने उन्हें एक दूरदर्शी नेता के रूप में स्थापित कर दिया।
जातीय राजनीति और विरोध
बिहार में उस समय जातीय राजनीति अपने चरम पर थी।
मंडल पिछड़े समाज से आते थे और उनकी नीतियाँ भी पिछड़े वर्गों को आगे बढ़ाने पर केंद्रित थीं।
इससे सवर्ण नेताओं और उनके समर्थकों में असंतोष बढ़ गया।
यही विरोध धीरे-धीरे इतना तीव्र हो गया कि उनकी सरकार अस्थिर हो गई।
मुख्यमंत्री पद का त्याग
आखिरकार राजनीतिक अस्थिरता और जातीय समीकरणों के दबाव के चलते बिंदेश्वरी मंडल को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा।
उनका मुख्यमंत्री कार्यकाल भले ही छोटा रहा, लेकिन इसने बिहार की राजनीति में एक नई दिशा दी।
👉 यह साबित हुआ कि सत्ता केवल ऊँची जातियों और बड़े घरानों तक सीमित नहीं है।
एक साधारण किसान का बेटा भी मुख्यमंत्री बन सकता है और समाज की दिशा बदल सकता है।
बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल का मुख्यमंत्री बनना बिहार की राजनीति में एक मील का पत्थर था।
यह केवल एक व्यक्ति की जीत नहीं थी, बल्कि यह उस वंचित समाज की जीत थी, जो सदियों से हाशिये पर खड़ा था।
उनका छोटा कार्यकाल भी इतना प्रभावशाली रहा कि आज भी उन्हें याद किया जाता है।
मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने की असली वजह
उनकी सरकार शुरुआत से ही जातीय समीकरणों और राजनीतिक विरोधाभासों के कारण अस्थिर बनी रही।
जातीय असंतुलन –
उनकी नीतियाँ पिछड़े वर्गों और किसानों के कल्याण पर केंद्रित थीं।
इससे सवर्ण नेताओं और प्रभावशाली तबकों में असंतोष फैल गया।
उन्हें लगा कि मंडल की सरकार जातीय संतुलन बिगाड़ रही है।-
राजनीतिक साजिशें –
विपक्षी दल ही नहीं, बल्कि उनके सहयोगी भी उन्हें कमजोर करने में लगे थे।
कई बार उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की कोशिशें हुईं। -
आर्थिक और प्रशासनिक दबाव –
बिहार की उस समय की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी।
सीमित संसाधनों और बार-बार बदलती सरकारों ने विकास कार्य ठप कर दिए थे।
मंडल को एक तरफ प्रशासनिक मशीनरी को संभालना था और दूसरी तरफ राजनीतिक विरोध का सामना करना था।
इस्तीफे का असर
उनके इस्तीफे ने बिहार की राजनीति में कई संदेश दिए:
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यह साबित हुआ कि बिहार की सत्ता का खेल केवल जातीय समीकरणों और गठबंधनों पर आधारित है।
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वंचित वर्ग से आने वाले नेताओं के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुँचना आसान नहीं, बल्कि एक कठिन संघर्ष है।
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मंडल का छोटा कार्यकाल ही उनकी पहचान बन गया।
जातीय मतभेदों के खिलाफ संघर्ष
वे मानते थे कि जातिवाद समाज और लोकतंत्र दोनों को कमजोर करता है।
उनके संघर्ष के कुछ प्रमुख पहलू थे:
पिछड़ों की आवाज़ बनना –
मंडल ने हमेशा पिछड़े वर्गों के अधिकारों की रक्षा की।
उन्होंने कोशिश की कि शिक्षा, नौकरी और राजनीति में उन्हें बराबर का अवसर मिले।-
सामाजिक न्याय की पहल –
वे चाहते थे कि समाज में सभी जातियों और वर्गों को समान अधिकार मिलें।
उनके प्रयासों से वंचित समाज राजनीति में अपनी भूमिका समझने लगा। -
जातीय दमन का विरोध –
मंडल उन घटनाओं के खिलाफ खुलकर बोले, जहाँ ऊँची जातियों द्वारा नीची जातियों का शोषण किया जाता था।
राजनीतिक विरासत
हालांकि उनका मुख्यमंत्री कार्यकाल छोटा रहा, लेकिन उनके विचार और संघर्ष ने आने वाली पीढ़ियों को गहराई से प्रभावित किया।
उनकी विरासत के प्रमुख पहलू:
सादगी और ईमानदारी –
वे अपने जीवनभर सादगी से जीते रहे।
न तो उन्होंने सत्ता का दुरुपयोग किया और न ही व्यक्तिगत लाभ के लिए राजनीति की।-
सामाजिक न्याय की नींव –
उनकी नीतियों और विचारों ने बिहार में सामाजिक न्याय की राजनीति की नींव रखी।
यही नींव आगे चलकर कर्पूरी ठाकुर, लालू प्रसाद यादव और अन्य नेताओं ने मजबूत की। -
जनप्रिय छवि –
वे ऐसे नेता बने जिन्होंने जनता से सीधा संवाद किया।
गरीब और वंचित लोग उन्हें अपना सच्चा प्रतिनिधि मानते रहे। -
पथप्रदर्शक की भूमिका –
मंडल भले ही लंबा कार्यकाल न चला पाए, लेकिन उन्होंने दिखा दिया कि लोकतंत्र में हर वर्ग की भागीदारी जरूरी है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
प्रश्न 1: बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर: उनका जन्म 25 अगस्त 1918 को बिहार के मधेपुरा जिले के मुरहो गाँव में हुआ था।
प्रश्न 2: उनके पिता का नाम क्या था और वे क्या करते थे?
उत्तर: उनके पिता का नाम राम जी मंडल था और वे एक साधारण किसान थे।
प्रश्न 3: मंडल का छात्र जीवन कैसा रहा?
उत्तर: छात्र जीवन से ही वे अन्याय और असमानता के खिलाफ खड़े होते रहे और सक्रिय राजनीति में आने की नींव उसी दौर में पड़ी।
प्रश्न 4: बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल बिहार के कितनेवें मुख्यमंत्री बने थे?
उत्तर: वे बिहार के 7वें मुख्यमंत्री बने थे।
प्रश्न 5: उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा क्यों देना पड़ा?
उत्तर: जातीय राजनीति, राजनीतिक अस्थिरता और विरोधी गठबंधनों के दबाव ने उन्हें इस्तीफा देने पर मजबूर किया।
प्रश्न 6: उनकी राजनीतिक विरासत क्या है?
उत्तर: सामाजिक न्याय, सादगी और ईमानदारी पर आधारित उनकी राजनीति ने आने वाली पीढ़ियों को दिशा दी।
बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल का जीवन इस बात का प्रमाण है कि सच्चा नेता वही है, जो सत्ता को साधन नहीं, बल्कि सेवा का माध्यम माने।
उनका इस्तीफा यह दर्शाता है कि राजनीति में ईमानदारी और सामाजिक न्याय की राह कठिन जरूर है, लेकिन असंभव नहीं।
👉 आज भी जब बिहार की राजनीति में सामाजिक न्याय की बात होती है, तो बिंदेश्वरी मंडल का नाम सम्मानपूर्वक लिया जाता है।
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