बिहार के अबतक के मुख्यमंत्री सीरिज भाग 8: बिहार के 6ठे मुख्यमंत्री सतीश प्रसाद सिंह|

बिहार के अबतक के मुख्यमंत्री सीरिज भाग 8: बिहार के 6ठे मुख्यमंत्री सतीश प्रसाद सिंह|


'तीश प्रसाद सिंह ' एक ऐसे कर्मठ और जहीन व्यक्ति थे जिन्हें अपने भाइयों से पुर्णतः निराशा मिली फिरभी अपने दम पर उन्होंने अपनी गौरव गाथा लिखी| पढ़िए घर निकले जाने के बाद मुख्यमंत्री बनने तक के उनके दिलचस्प जीवन सफ़र को|

परिचय:

सतीश प्रसाद का जन्म 1 जनवरी 1931 को बिहार के खगड़िया जिले के प्रवत्त प्रखंड के कुर्चाक्का गाँव में एक कुशवाहा परिवार में हुआ था|  कुर्चक्का का नाम अब बदल कर सतीशनगर कर दिया गया है| सतीश प्रसाद का जन्म एक संम्पन्न परिवार में हुआ था, हालाँकि वे पिछड़े जाती से थे पर उनके पिताजी एक बड़े जमींदार थे| विद्यालय के दिनों से ही सतीश प्रसाद का रुझान राजनीती के तरफ होने लगा था, ग्रेजुएशन होते होते उन्होंने राजनीती को ही अपना सर्वस्व देने का मन बना लिया और इसी रस्ते आगे बढ़ें| दो बार चुनाव हरने और परिवार तथा ग्राम लोगो के नजर में हसी का पात्र बन्ने के बाद भी वे हार नहीं माने और तीसरी में एस एस पी (संयुक्त शोश्लिस्ट पार्टी) से टिकट ले क्र चुनावी दंगल में बड़ा हाँथ मारा इस बार वे 20 हजार से भी अधिक वोट से जित हासिल किये|

जब घर से निकाल दिए गयें:

सतीश प्रसाद सिंह के पिता इलाके के बड़े जमींदार और प्रतिष्ठित व्यक्ति थे| एक तो राजनीती में उतरने के उनके फैसले से घरवाले नाराज थे ऊपर से उन्होंने घरवालों को बिना विस्वास में लिए ही एक दूसरी जाती की लड़की से विवाह कर लिया| इस बात से उनके पिताजी इतना नाराज हुए कि उन्हें घर से ही निकल दिया| घर से निकले जाने के बाद उनके भाइयों ने इस नाराजगी का फायदा उठाया और संपत्ति का सारा बंटवारा आपस में ही कर लिया| सतीश प्रसाद के पिता के पास 400 बीघा जमीं की जमींदारी थी उसमे से बस एक छोटा सा टुकडा ही उनके हिस्से में आया| परन्तु सतीश प्रसाद एक जहीन व्यक्ति थें, जरा बी विचलित हुए बिना अपने लक्ष्य की और अग्रसर हो गयें|

चुनाव हरने से मुख्यमंत्री तक का सफ़र:


सतीश प्रसाद सिंह का जन्म एक जमींदार परिवार में हुआ था, जहां खेती बड़ी किसानी ही मुख्य रूप से आजीविका का साधन माना जाता था| राजनीती को घर बार बर्बाद करने वाला पेशा माना जाता था| बहरहाल जो भी हो घर वालों से बगावत कर ही सही पर वे अपने फैसले पर कायम रहें| 
 
1962 के विधान सभा चुनाव में सतीश प्रसाद सिंह ने परबत्ता विधानसभा क्षेत्र से चुनम लड़ने का फैसला लिया| न सिर्फ घरवाले वरण गाँव वाले भी उनका मजाक बनाने लगे| लोग हँसते और बोलते की जो भी थोड़ा हिस्से में मिला है वो भी बेच खायगा| श्री सिंह स्वतंत्र पार्टी से टिकट लेकर चुनाव में खड़े हुए और खूब जोर लगाया, 17 हजार से अधिक वोट भी मिला पर वे चुनाव हार गयें|  परबत्ता में 1964 में फिर उपचुनाव की नौबत आई और इसबार भी वे निर्दालिये चुनाव में खड़े हुए और इसबार फिर हार गए| लोगो को उनपर हंसने का एक और  मौका मिला, लोग हस्ते और बोलते थे की देखते है कब तक जमीन बेचवा राजनीती चलती है|

1967 के विधानसभा चुनाव में संयुक्त शोश्लिस्ट पार्टी से सतीश प्रसाद को परबत्ता विधानसभा सीट से टिकट मिला| इस बार हवा कुछ बदली बदली सी थी, जनमानस मेड कांग्रेस के खिलाफ गुस्सा का लहर फुट पड़ा था इसका जबरदस्त फायदा सितिश प्रसाद को हुआ और वे २० हजार से भी अधिक मतों से विजयी हुए|

मुख्यमंत्री बनने की कहानी:

इसी के साथ महामाया प्रसाद सिन्हा के नेतृत्वा में पाहली बार बिहार में गैर कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ| महामाया प्रसाद सिन्हा की सरकार में तिन व्यक्ति बी.पी. मंडल, रामानंद तिवारी और भोला पासवान शास्त्री असवैधानिक तरीके से मंत्री बना दिए गए थे| ये तीनो ही एस.एस.पी. के सदस्य थें| इन तीनो का मंत्री बनाया जाना लोहिया को पसंद नहीं आया और उन्होने इस असंवैधानिक कार्य का खुल कर विरोध किया| 

संयुक्त शोश्लिस्ट पार्टी में आतंरिक कलह मचा हुआ था| इस कल्लाह और बगावत का फायदा कांग्रेस ने खूब उठाया| कृष्ण बल्लभ सहाए सतीश प्रसाद सिंह से मिले और बात चित में उन्हें यह समझा दिया की अगर वे 36 विधायकों को अपने साथ मिला ले तो कांग्रेस उन्हें मुख्यमंत्री बना देगी| दुसरे ही दिन सतीश प्रसाद ने २५ विधायको की एक बैठक बुलाई और के.बी. सहाए ने इस खबर को विधायकों के नाम के साथ अपने अखबार नवराष्ट्र में छाप दिया| इधर कांग्रेस नेतृत्वा ने त्रिवेणी जाती संघ को खुश रखने के लिए एक योजना बनाया जिसमे यह तय हुआ कि पहले कोई कुशवाहा मुख्यमंत्री बनेगा फिर वो बी.पी. मंडल को एमएलसी बनाएगा और फिर त्यागपत्र दे देगा| फिर बी.पी. मंडल मुख्यमंत्री बनेंगे और फिर भोला पासवान शास्त्री को मौक़ा दिया जायगा| इस प्रकार इस त्रिवेणी जातिसंघ की सरकार पर आमसहमति बनी|

जोड़ तोड़ की इस राजनीती से महामाया प्रसाद सिन्हा की सर्कार को गिरा दिया गया और तय निति के अनुसार 28 जनवरी 1968 को सतीश प्रसाद सिन्हा मुख्यमंत्री बनें और केवल तीन दिन बाद ही उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया| 

सतीश प्रसाद सिंह बिहार के ऐसे मुख्यमंत्री बनें जिनको अंतर्जतिये विवाह करने के कारन घर से निकल दिया गया था| मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने वाले पिछड़ी के जाती पहले नेता है सतीश प्रसाद सिंह, भले ही उनका कार्यकाल मात्र दिन का ही रहा हो पर फिर भी पिछड़ी जाती से पहले मुख्यमंत्री तो वही रहें| लेकिन राजनैतिक विडंबना यह रही की वे कभी भी पिछड़ी जाती के नेता के रूप में खुद को स्थापित कर ही नहीं पायें| बाद में श्री सिंह कांग्रेस, राजद और भाजपा में भी रहें पर उनकी राजनीती कभी भी दुबारा परवान ना चढ़ सकी|

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