बिहार के अब तक के मुख्यमंत्री भाग 7 : बिहार का वो काला वर्ष जब सिर्फ 5 माह में बदले 4 मुख्यमंत्री
क्या हुआ था:
बिहार के चौथे मुख्यमंत्री श्री के.बी. सहाए को पटना पश्चिमी विधान सभा क्षेत्र से महामाया प्रसाद सिन्हा ने चुनौती डी थी और चुनाव जीते भी थे| महामाया प्रसाद के मुख्यमंत्री बनते ही बिहार में पहलीबार गैर कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ | महामाया प्रसाद सिन्हा 28 जनवरी 1968 को मुख्यमंत्री पद से हटाये गए और सतीश प्रसाद सिंह केवल 5 दिनों के लिए मुख्यमंत्री बने, इनके बाद बी.पी. मंडल मुख्यमंत्री बनें पर केवल 31 दिन ही टिक पायें| इनके बाद भोला पासवान शास्त्री मुख्यमंत्री बने पर वो मुश्किल से मात्र 3 माह तक ही कुर्सी पर आसीन हो सके इसके बाद 6 महीने का राष्ट्रपति शाशन लग गया|
क्यों और कैसे हुआ :
महामाया प्रसाद सिन्हा को प्रथम गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री होने की उपाधि प्राप्त है| प्रथम गैर कांग्रेसी सरकार गठित होने के बाद बिहार में पिछड़ावाद बहुत ही त्रेजी से फैला| महामाया प्रसाद सिन्हा, के.बी.सहाए को हरा कर बिहार के मुख्यमंत्री बने थे, श्री सिन्हा की ये सरकार एक गठबंधन की सरकार थी और श्री सिन्हा के गुट में मात्र 24 विधायक ही थे जबकि एस एस पी के पास 68 विधायक| तेजी से प्रसारित होनेवाले पिछड़ावाद का असर महामाया प्रसाद की गठबंधन वाली सर्कार पर भी हो रहा था, ऊपर से इस सरकार में एस एस पी के तीन ऐसे लोग मंत्री बन गयें जिन्हें पार्टी के संविधान के अनुरूप मंत्री नहीं बनना चाहिए था| इसमें एक थे बी. पी. मंडल, जो लोकसभा के सदस्य रहते हुए राज्य सरकार में मंत्री थे। दूसरे थे रामानंद तिवारी, जो एसएसपी के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए मंत्री थे और तीसरे थे भोला सिंह, जो एमएलसी होने के बावजूद मंत्री थे।
सतीश प्रसाद सिंह और बी.पी. मंडल |
इन तीनो का मंत्री बनना लोहिया को रास नहीं आया और उन्होंने इस असंवैधानिक कदम का खुल कर विरोध किया| एस एस पी में मचे इस आंतरी कलह का फायदा कांग्रेस ने उठाया| कांग्रेस एसएसपी में मचे बवाल और मतभेद को खूब हवा दिया| के.बी. सहाय सतीश प्रसाद सिंह से मिले और उन्हें और उनसे बातचीत में उन्हें यह समझा दिया की अगर आप 36 विधायको को अपने साथ ले लेते हैं तो आपकी सरकार बन सकती है| इनके एक प्रयास का भंडाफोड़ तो स्वयं के. बी. सहाय ने ही कर दिया। सतीश प्रसाद सिंह ने 25 विधायकों की बैठक बुलायी और इस खबर को के.बी. सहाय ने अपने अखबार ‘नवराष्ट्र’ में विधायकों के नाम के साथ प्रकाशित करवा दिया। इस बीच कांग्रेस नेतृत्व ने पिछड़ावाद के नाम पर एक फार्मूला तय किया कि पहले कुशवाहा मुख्यमंत्री बनेंगे और वह बी.पी. मंडल को एमएलसी मनोनीत करेंगे। इसके बाद बी. पी. मंडल मुख्यमंत्री बनेंगे और फिर भोला सिंह को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिलेगा। इसमें त्रिवेणी संघ की तीनों जातियों को संतुष्ट करने की बात भी सामने आयी। लेकिन कुशवाहा में कौन मुख्यमंत्री बनेगा, नाम तय नहीं था।
28 जनवरी 1968 को सतीश प्रसाद सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया फिर उन्होंने जैसा की तय हुआ था बी.पी. मंडल को एमएलसी मनोनीत किया और खुद उनके लिए मुख्यमंत्री के पद से त्यागपत्र दे दिया| इस सरकार का विरोध एसएसपी के अंदर भी शुरू हो गया। यह सरकार बमुश्किल एक माह भी ठीक से नहीं चल पायी और असमय कालकलवित हो गयी।
लेकिन इसी एक महीने के मुख्यमंत्रित्व काल ने बी. पी. मंडल को मंडल आयोग के अध्यक्ष बनने की पृष्ठभूमि तैयार की और उसी जमीन पर उन्होंने पिछड़ावाद का ऐसा मंत्र दिया कि भारतीय समाज में एक नये वैचारिक आंदोलन की शुरुआत हुई और भारतीय समाज के नवनिर्माण की दिशा तय हुई।
इसके बाद बिहार के आठवें मुख्यमंत्री के रूप में भोला पासवान शास्त्री जी ने 22 मार्च 1968 को शपथ ग्रहण किया, परन्तु वो भी लम्बे समाये तक अपने कुर्सी को संभल नहीं पाय और 29 जून 1968 को बिहार में पहला राष्ट्रपति शाशन लगाया गया|
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